लड़के ने मां को बताई दिल की बात
दिसंबर 2001 का कोई दिन रहा होगा। लड़के ने अपनी मां से अपनी लड़की दोस्त के बारे में बताया। लड़के ने बताया कि भारती और वो दोनों एक होना चाहते हैं। मां ने बेटे से कहा कि लड़की प्रभावशाली परिवार से आती है। वह मिडिल क्लास फैमिली में कैसे एडजस्ट कर पाएगी। किसी ऐसी लड़की से शादी करो जो इस परिवार के साथ रहने में सहज हो। वह इतना महंगा फूल भेजती है, तुम्हारी तो पूरी तनख्वाह ही फूल खरीदने में ही चली जाएगी। कैसे वह इस परिवार में रह पाएगी।? बेटे ने मां से कहा कि लड़की अपने परिवार से निकलना चाहती है। लड़की इस रिश्ते के बारे में खुद अपने माता-पिता को बताएगी। सब कुछ प्लान था कि मार्च में चुनाव होना है। उसका भाई चुनाव लड़ेगा। जीत पक्की है। घर में जीत का जश्न चलेगा और सबका मूड अच्छा होगा तो लड़की अपने इस रिश्ते के बारे में परिवार को बताएगी।
भाइयों को लगी बहन के प्यार की भनक
लेकिन सब कुछ प्लान के मुताबिक नहीं हुआ। नीतीश कटारा और भारती यादव के प्यार की भनक उसके भाई विकास यादव को लग चुकी थी। विकास और विशाल यादव को यह रिश्ता पसंद नहीं था। वे इस रिश्ते के खिलाफ थे। असल में, इस कहानी की शुरुआत 1998 में तब हुई जब नीतीश कटारा ने IMT, गाजियाबाद में MBA (PGDBM) कोर्स में दाखिला लिया। वहां उनकी दोस्ती गौरव गुप्ता और भरत दिवाकर से हुई। उनकी मुलाकात भारती यादव से भी हुई। भारती, डीपी यादव की बेटी थीं। डीपी यादव तब राज्यसभा सांसद थे। इलाके में उनकी तूती बोलती थी। साल 2000 में कोर्स पूरा हो गया। नीतीश कटारा को दिल्ली में रिलायंस जनरल इंश्योरेंस में नौकरी मिल गई। जनवरी 2001 तक, नीतीश और भारती की दोस्ती प्यार में बदल गई। भारती के परिवार और रिश्तेदारों को इस रिश्ते के बारे में पता था। उनकी बहन भावना यादव, मां उमलेश यादव, भाई विकास यादव और चचेरे भाई विशाल यादव को भी सब मालूम था।
शिवानी गौर, जो भारती की बचपन की दोस्त थीं, की शादी अमित अरोड़ा से तय हुई। 4 जून 2001 को उनकी सगाई हुई। शादी 16 फरवरी 2002 को थी। शिवानी गौर ने भारती यादव के परिवार और नीतीश कटारा के परिवार को शादी में बुलाया था। नीतीश कटारा अपने दोस्त के साथ शादी में आए और भारती भी वहां थीं। दोनों ने शादी में साथ डांस किया और शादी के समय तस्वीरें भी खिंचवाईं। आधी रात करीब 12:30 बजे के बीच, नीतीश कटारा को विकास यादव, विशाल यादव और सुखदेव यादव के साथ टाटा सफारी में देखा गया था। गाड़ी का नंबर PB-07H-0085 था। इसके बाद नीतीश कटारा को किसी ने नहीं देखा।
सड़क पर मिली जली हुई लाश…इतना मारा था कि आंतें बाहर निकल आईं
अगली सुबह, 17 फरवरी 2002 को एक जली हुई लाश खुर्जा के पास शिखरपुर रोड पर मिली। यह जगह शादी के वेन्यू से 80 किमी दूर थी। शव इतना क्षत-विक्षत स्थिति में था कि आंते तक बाहर आ गई थीं। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। नीलम कटारा ने अपने बेटे के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ी। यह मामला कई सालों तक चला। कोर्ट में कई तरह की बातें हुईं। गवाहों ने अपने बयान बदले। लेकिन नीलम कटारा ने हार नहीं मानी।
फ़ास्ट-ट्रैक कोर्ट ने विकास और विशाल को दोषी पाया
30 मई 2008 को, दिल्ली की एक फ़ास्ट-ट्रैक कोर्ट ने विकास और विशाल यादव को नीतीश कटारा के अपहरण और हत्या के मामले में दोषी पाया। कोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही, दोनों पर 1 लाख 60 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। नवंबर 2009 में, विकास को भारती की शादी में शामिल होने के लिए जमानत मिल गई। भारती की शादी एक लोकल बिज़नेसमैन से तय हुई थी। यह भी सामने आया कि विकास यादव को अपनी जेल की शुरुआती दो सालों में 66 बार जमानत मिली। कई बार तो जमानत देने का कोई खास कारण भी नहीं बताया गया। नीतीश कटारा की मां ने जेल अधिकारियों पर यादव परिवार से मिलीभगत करने का आरोप लगाया। दिल्ली हाई कोर्ट ने विकास यादव पर जमानत पर रहते हुए कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया। इसमें जेसिका लाल केस में शामिल होना और दो बार फरार हो जाना भी शामिल था।
दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला बरकरार रखा
2 अप्रैल 2014 को, दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। ट्रायल कोर्ट ने विकास यादव, विशाल यादव और कॉन्ट्रैक्ट किलर सुखदेव पहलवान को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कटारा की मां और अभियोजन पक्ष ने हाई कोर्ट में एक अपील दायर की थी। वे दोषियों को मौत की सजा दिलवाना चाहते थे। इस अपील पर 25 अप्रैल 2014 को सुनवाई होनी थी। 6 फरवरी 2015 को, दिल्ली हाई कोर्ट ने विकास यादव और उसके चचेरे भाई विशाल यादव को नीतीश कटारा की हत्या के लिए 30 साल की जेल की सजा सुनाई। 18 अगस्त 2015 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। 9 अक्टूबर 2015 को, सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश कटारा की बहन द्वारा यादव भाइयों को मौत की सजा देने की अपील को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल की सजा को बरकरार रखा।
3 अक्टूबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने विशाल और विकास यादव को 25 साल की जेल की सजा सुनाई। दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले दोषियों को हत्या के लिए 25 साल और सबूत नष्ट करने के लिए 5 साल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि दोनों सजाएं एक के बाद एक चलेंगी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। इसका मतलब था कि दोनों भाइयों को 30 साल के बजाय 25 साल ही जेल में बिताने होंगे। इस मामले में तीसरे दोषी, सुखदेव पहलवान को 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई। इस तरह, सालों तक चले इस केस का अंत हुआ और दोषियों को उनके किए की सजा मिली। कोर्ट ने यह भी साफ़ कर दिया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वो कितना भी ताकतवर क्यों न हो।
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