दिल्ली में प्रदूषण ‘सीवियर’ जोन से ऊपर पहुँच चुका है, जिससे एम्स के डॉक्टरों ने पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी और लाइफ थ्रेटनिंग हालात की चेतावनी दी है।

एजेंसियों को उठाने होंगे कई कदम
एजेंसियों को अर्जेंट बेसिस पर कठोर कदम उठाने होंगे। हवा की वजह से हो रही बीमारियों को लेकर मंगलवार को एम्स के रेस्पिरेट्री विभाग ने प्रेस कांफ्रेंस की और बताया कि प्रदूषित हवा सीवियर जोन में पहुंच गई है। डॉक्टर अनंत ने कहा कि 10 साल से ऐसे ही हालात है, हर बार बात होती है, लेकिन केवल सर्दियों के तीन महीने इस पर चर्चा होती है, फिर सब चुप हो जाते हैं।
इस स्थिति से निपटने के लिए करने होंगे फैसले
उन्होंने कहा कि मेरी अपनी राय है कि इस स्थिति से निपटने के लिए कठोर फैसले करने होंगे। डॉक्टर ने साफ कहा कि एयर प्यूरीफायर किसी एक कमरे या सीमित जगह में कुछ हद तक मदद करते हैं। वहीं, एंटी-स्मॉग गन सिर्फ निचले स्तर पर थोड़ी देर के लिए धूल कम कर सकती है।
लोगों में पनप रहीं यें बीमारियां
डॉक्टर ने बताया कि प्रदूषण के बहुत ही छोटे व महीन कण (PM2.5) नाक के जरिए शरीर में एंट्री करते हैं और ब्लड तक पहुंच जाता है और यहां से पूरे शरीर में फैलता है। इस वजह से ये परेशानियां होती हैं। इससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है, ब्लड प्रेशर बढ़ता है, स्ट्रोक (ब्रेन अटैक) की आशंका बढ़ती है, नसें मोटी और ब्लॉक होने लगती है और कैंसर के जोखिम में भी इजाफा होता है।
औसत उम्र में कमी
कई विदेशी संस्थाओं ने प्रदूषण की वजह से दिल्ली में लाइफ कम होने यानी औसत उम्र में कमी का दावा किया है, इस सवाल पर एम्स के एचओडी ने कहा कि ये सभी ‘मॉडलिंग स्टडीज’ पर आधारित अनुमान है। सीधे-सीधे प्रमाणित डेटा नहीं है। लेकिन यह तय है कि लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से बीमारियां बढ़ेंगी और जीवन पर भी असर होगा।
ओपीडी में 30 से 35 प्रतिशत मरीज़ बढ़े
रेस्पिरेट्री विभाग के डॉक्टर सौरभ ने बताया कि प्रदूषित हवा की वजह से बीमारियां बढ़ गई है। सांस के मरीजों की संख्या में 30 से 35 पर्सेट तक इजाफा हुआ है। जो लोग पहले से अस्थमा या सीओपीडी के शिकार है, अचानक उनकी तबीयत बिगड़ रही है। कई मरीजों को इमरजेंसी में एडमिट करना पड़ रहा है, दवा, नेबुलाइजेशन, वेंटिलेटर पर रखना पड़ रहा है।
सर्दी-खांसी ठीक नहीं हो रही
डॉक्टर अनंत मोहन ने कहा कि पिछले 10 सालो की तुलना करें तो जो लोग सर्दी, खांसी से दो से तीन दिन में ठीक हो जाते थे, अब उन्हें ठीक होने में हफ्ते से भी ज्यादा समय लग रहा है। बीमारियां सीवियर हो रही है, कुछ एडमिट हो रहे हैं।
प्रदूषण क्यों बढ़ जाता है?
जब तापमान कम होता है, हवा ठंडी और भारी हो जाती है, जिससे प्रदूषण के कण जमीन के पास ही रुक जाते है। जब हवा कम चलती है, तो हवा साफ नही हो पाती। दिल्ली की भौगोलिक स्थिति और मौसम भी इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं।
क्यों नहीं दिख रहा कदमों का असर?
प्रदूषण की रोकथाम को लेकर सरकार कई कदम उठाने का दावा कर रही है। फिर क्यों इमरजेंसी जैसे हालात है? सरकार के प्रयासों को देखें, तो सबसे ज्यादा फोकस सड़कों पर पानी के छिड़काव जैसे अस्थायी उपायों पर है। इससे कुछ देर के लिए धूल कम हो जाती है, लेकिन पानी सूखते ही फिर उड़ने लगती है।
ठोस उपायों पर जोर नहीं
सड़को की मरम्मत जैसे ठोस उपायों पर उतना जोर नहीं, जो धूल की मुख्य वजह है। इसी तरह वाहनों के धुएं से उठने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए प्रभावी उपायो की कमी है। खुले में कचरा जलाने की घटनाएं बढ़ी है। रिहायशी इलाकों में कंस्ट्रक्शन साइट्स की निगरानी का सिस्टम भी लचर है।
