आईआईटी कानपुर के सहयोग से लागू होगा प्रोजेक्ट
पायलट प्रोजेक्ट आईआईटी कानपुर के सहयोग से लागू किया जाएगा। आईआईटी कानपुर साइंटिफिक और तकनीकी संचालन देगा। आईआईटी कानपुर ने पहले भी इस तरह के सात सफल क्लाउड सीडिंग परीक्षण किए हैं, जो अप्रैल से जुलाई के बीच सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में किए गए थे। अब दिल्ली में इस पायलट प्रोजेक्ट का क्रियान्वन प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से किया जाएगा। इसका उद्देश्य केवल बारिश कराना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि क्या ऐसी कृत्रिम वर्षा हवा में मौजूद PM2.5 और PM10 जैसे प्रदूषकों की मात्रा को कम कर सकती है।
प्रोजेक्ट पर क्या बोले मंत्री सिरसा
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि तैयारी पूरी है, बस अब बादलों का इंतज़ार है। जैसे ही मौसम अनुकूल होगा, दिल्ली अपने पहले आर्टिफिशल रेन प्रोजेक्ट की गवाह बनेगी। यह सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक रोडमैप है। उन्होंने कहा कि स्वच्छ हवा सभी का अधिकार है, एंटी स्मॉग गन, स्प्रिंकलर, और निर्माण स्थलों पर धूल रोकने के कड़े नियमों से लेकर अब आसमान तक, हम दिल्ली की हवा को साफ करने की दिशा में हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यह पायलट प्रोजेक्ट सिर्फ बारिश लाने का नहीं, बल्कि वैज्ञानिक साहस और पर्यावरणीय अनुकूलता का प्रतीक है।
पायलट प्रोजेक्ट की बड़ी बातें
– आईएमडी रियल टाइम पर बादलों की स्थिति, ऊंचाई, नमी और हवा की दिशा जैसी जानकारी उपलब्ध कराएगा
– आईआईटी कानपुर की टीम Cessna विमान में फ्लेयर-बेस्ड सिस्टम से सिल्वर आयोडाइड, आयोडीन सॉल्ट और रॉक सॉल्ट मिलाकर विशेष मिश्रण का प्रयोग करेगी
– कुल पांच उड़ानों की योजना है, जिनमें प्रत्येक उड़ान कम से कम 100 वर्ग किमी क्षेत्र में एक से 1.5 घंटे तक संचालित की जाएगी
– उड़ानें अत्यधिक सुरक्षा वाले क्षेत्रों (जैसे राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, संसद भवन आदि अन्य विशिष्ट स्थानों) से दूर रहेंगी
– एयर क्वाॉलिटी पर असर का विश्लेषण मॉनिटरिंग स्टेशनों के जरिए किया जाएगा
– ज्यादातर जरूरी एनओसी मिल चुकी हैं, अब सिर्फ़ उड़ान योजना जैसी कुछ छोटी औपचारिकताएं बाकी हैं
– इस प्रयोग में मुख्यत निंबोस्ट्रेटस (Ns) बादलों का चयन किया जाएगा जो 500 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं और जिनमें कम से कम 50 प्रतिशत नमी होनी चाहिए।
– परियोजना की कुल अनुमानित लागत 3.21 करोड़ है और इसका पूरा खर्च दिल्ली सरकार वहन करेगी