ड्रग्स के इस्तेमाल को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इसमें 11 साल के मासूम भी शामिल हैं। यह रिपोर्ट ‘नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया’ में छपा है। जानें बड़ी बातें।

शॉकिंग! 11 साल के बच्चे भी ले रहे ड्रग्स
इस सर्वे में करीब 14.7 साल के 5,920 छात्रों से जानकारी ली गई। यह सर्वे दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, लखनऊ, चंडीगढ़, हैदराबाद, इम्फाल, जम्मू, डिब्रूगढ़ और रांची शहरों में हुआ। सर्वे में पाया गया कि 15.1 फीसदी छात्रों ने कभी न कभी कोई नशीला पदार्थ इस्तेमाल किया है। वहीं, पिछले एक साल में 10.3 फीसदी और पिछले महीने में 7.2 फीसदी छात्रों ने इसका इस्तेमाल किया।
10 शहरों के सर्वे में खुलासा
चार फीसदी तंबाकू और 3.8 फीसदी शराब के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले पदार्थों में ओपिओइड्स (2.8%), भांग (2%) और इनहेलेंट्स (1.9%) शामिल थे। खास बात यह है कि ओपिओइड्स का ज्यादातर इस्तेमाल बिना डॉक्टर की पर्ची के मिलने वाली दवाइयों के रूप में हुआ। इस बड़े सर्वे का नेतृत्व डॉ. अंजू धवन ने किया, जो AIIMS दिल्ली के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की प्रमुख हैं। उनके साथ चंडीगढ़, डिब्रूगढ़, लखनऊ, बेंगलुरु, श्रीनगर, इम्फाल, मुंबई, हैदराबाद और रांची के मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टर भी शामिल थे।
बढ़ सकता है ये आंकड़ा : रिपोर्ट
जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे नशे का इस्तेमाल भी बढ़ता जाता है। सर्वे में पाया गया कि 11वीं-12वीं क्लास के बच्चे 8वीं क्लास के बच्चों की तुलना में दोगुने नशीले पदार्थ इस्तेमाल करते हैं। लड़कों में तंबाकू और भांग का इस्तेमाल ज्यादा पाया गया, जबकि लड़कियों में इनहेलेंट्स और बिना पर्ची वाली ओपिओइड दवाइयों का इस्तेमाल ज्यादा देखा गया। आधे से ज्यादा बच्चों ने कहा कि अगर उनसे पूछा जाए तो वे नशे के इस्तेमाल को छिपाएंगे। इससे यह पता चलता है कि असल में नशे का इस्तेमाल करने वाले बच्चों की संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है।
बच्चों में नशे के इस्तेमाल की वजह क्या है
सर्वे में नशे के इस्तेमाल और मानसिक परेशानी के बीच एक सीधा संबंध भी पाया गया। जो बच्चे पिछले साल नशीले पदार्थ इस्तेमाल कर रहे थे, उनमें से 31 फीसदी बच्चों में मानसिक परेशानी के लक्षण ज्यादा पाए गए। वहीं ऐसे बच्चों में यह फीसदी 25% था जो नशीले पदार्थ इस्तेमाल नहीं करते थे। खासकर व्यवहार संबंधी समस्याएं, अतिसक्रियता और भावनात्मक लक्षण इन बच्चों में ज्यादा देखे गए।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
इस स्थिति को देखते हुए, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट डॉ. अचल भगत कहते हैं कि बच्चों का इतनी कम उम्र में नशे की ओर बढ़ना एक गंभीर चेतावनी है। वे बताते हैं कि आसानी से नशीले पदार्थ मिल जाना और बच्चों की भावनात्मक परेशानियों पर ध्यान न देना, उन्हें इन चीजों की ओर धकेल रहा है। खासकर किशोरावस्था में दिमाग बहुत नाजुक होता है और इनहेलेंट्स, ओपिओइड्स और भांग जैसी चीजों से दिमाग को लंबे समय तक नुकसान पहुंच सकता है।
उन्होंने लड़कियों में नशे के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जताई, जो अक्सर खुद को शांत करने या दुख भुलाने के लिए किया जाता है। वे माता-पिता से आग्रह करते हैं कि वे बच्चों के मूड में बदलाव, अकेले रहना, पढ़ाई में गिरावट और बातों को छिपाने जैसी बातों पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि नशे का इस्तेमाल करने वाले सिर्फ 1% युवा मदद मांगते हैं। इसलिए स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता को मजबूत करने और परिवारों में खुलकर बातचीत करने की जरूरत है, ताकि यह शुरुआती प्रयोग लत में न बदल जाए।
ऐसे केस में परिवार-दोस्तों की भूमिका बेहद अहम
परिवार और दोस्तों का असर भी इसमें बड़ी भूमिका निभाता है। 40 फीसदी बच्चों ने बताया कि उनके घर में तंबाकू या शराब का इस्तेमाल होता है। जो बच्चे नशीले पदार्थ इस्तेमाल करते हैं, उनके दोस्त भी अक्सर ऐसी चीजें इस्तेमाल करते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि नशे के खिलाफ रोकथाम के उपाय बहुत पहले से शुरू होने चाहिए, आदर्श रूप से मिडिल स्कूल से पहले, ताकि पहली बार इस्तेमाल को टाला जा सके और बाद में लत लगने से रोका जा सके।
