दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी में वायु प्रदूषण के संबंध में ग्रेटर कैलाश-दो वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दी है। हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली प्रदूषण से जुड़े मामले पर सुनवाई हो रही है। ऐसे में इस मामले में भी शीर्ष अदालत ही जाना चाहिए।

क्या यह कार्यवाही का दोहराव नहीं होगा?
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम मामले की सुनवाई नहीं कर सकते, लेकिन हमारी चिंता यह है कि दिल्ली और उसके आसपास वायु गुणवत्ता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट भी विचार कर रहा है। इसलिए यदि हाई कोर्ट भी समानांतर रूप से सुनवाई करता है, तो क्या यह कार्यवाही का दोहराव नहीं होगा? पिछले 15-20 दिन से उच्चतम न्यायालय वायु गुणवत्ता मामले में निर्देश पारित कर रहा है।’
ग्रेटर कैलाश-दो वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका में अदालत से दिल्ली के वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तत्काल और दीर्घकालिक, प्रभावी और वैज्ञानिक उपाय करने का आदेश देने का आग्रह किया गया है।
हाई कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह यह नहीं कह रही है कि वह इस याचिका पर विचार नहीं कर सकती या इसमें कोई तथ्य नहीं है या याचिका में उठाए गए मुद्दे पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, वह केवल कार्यवाही के दोहराव को लेकर चिंतित है। याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका में उठाए गए मुद्दों और सुप्रीम कोर्ट में लंबित मुद्दों में अंतर स्पष्ट करने की कोशिश की। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि इस याचिका पर यहां विचार करने से कार्यवाही में दोहराव होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी इसी तरह के मुद्दे पर विचार कर रहा है।
हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को वहां लंबित मामले में हस्तक्षेप के लिए शीर्ष अदालत जाने की अनुमति दे दी और याचिका को अपने समक्ष लंबित रखा। इसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने वास्तविक कार्यान्वयन सुनिश्चित किए बिना केवल कागज पर उपाय निर्धारित करने तक ही खुद को सीमित रखा है।
एसोसिएशन की याचिका में क्या है?
याचिका में कहा गया है कि आज तक कोई वास्तविक या पर्याप्त जमीनी उपाय किए बिना इस तरह की विलम्बित और दिखावटी कार्रवाई से केवल और अधिक देरी हुई है। लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को लापरवाही से खतरे में डाला गया है और वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की गंभीरता के प्रति पूर्ण उपेक्षा प्रदर्शित की गई है। याचिका में दिल्ली सरकार, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति (सीपीसीसी), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम), दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और दिल्ली पुलिस को प्रतिवादी बनाया गया है।
