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Reading: बराबरी की भाषा: क्या व्यापारी सिर्फ मूंछों वाला होता है – Delhi News Daily
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Delhi News Daily > Blog > Entertainment > बराबरी की भाषा: क्या व्यापारी सिर्फ मूंछों वाला होता है – Delhi News Daily
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बराबरी की भाषा: क्या व्यापारी सिर्फ मूंछों वाला होता है – Delhi News Daily

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Last updated: May 18, 2025 1:36 am
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Navbharat Times - Hindi News
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कभी गौर किया है कि जब हम ‘व्यापारी’ शब्द सुनते हैं, तो हमारे मन में कौन-सी इमेज बनती है? अधिकतर लोगों के लिए वो एक पुरुष की छवि होती है – आत्मविश्वास से भरा, मूंछों को ताव देता हुआ, कठिन रिस्क लेने वाला और आर्थिक नियंत्रण रखने वाला। अब उसी लम्हे में सोचिए, क्या वो इमेज महिला की हो सकती है? संभवतः नहीं। आखिर ऐसा क्यों? क्यों उसमें स्त्री के लिए जगह नहीं है?

हमारे समाज में व्यापार करना सिर्फ़ आर्थिक काम नहीं रहा, बल्कि सामाजिक शक्ति का प्रतीक भी रहा है और भाषा भी उसी शक्ति-संतुलन को दर्शाती रही है। लेकिन आज भारत में लाखों महिलाएं व्यापारी हैं, वे कपड़े बेचती हैं, ऑनलाइन स्टोर चलाती हैं, बुटीक और कैफे की मालकिन हैं, स्टार्टअप्स की फाउंडर हैं लेकिन क्या हम उन्हें ‘व्यापारी’ कहकर संतुष्ट हो सकते हैं, जब वो शब्द उनके अस्तित्व को ही ग़लत संदर्भ में रखता है? जैसे हम ‘अध्यापक’ के साथ ‘अध्यापिका’, ‘नर्तक’ के साथ ‘नर्तकी’ या नृत्यांगना और ‘गायक’ के साथ ‘गायिका’ को स्वाभाविक मानते हैं, वैसे ही ‘व्यापारी’ के साथ भी एक स्त्रीलिंग विकल्प होना चाहिए जो सम्मानजनक, सहज और समानुपाती हो।

सोचिए, जब अंग्रेज़ी में businessman और businesswoman के लिए अलग-अलग शब्द हैं तो हिन्दी में सिर्फ़ एक व्यापारी है जो सभी लिंगों पर शासन करता है। इधर भाषा के ठेकेदारों का मानना है कि व्यापारी एक जेंडर न्यूट्रल शब्द है, हमें इसका स्त्रीलिंग शब्द क्यों ढूंढना है? बिना लॉजिक समझे विरोध करने को अपना धर्म बना चुके लोगों को न तो इसकी खुद जरूरत महसूस होती है, न दूसरों को यह करने देना चाहते हैं और न ही यह देख रहे हैं कि दुनिया की दूसरी भाषाओं में निरंतर बदलाव हो रहे हैं तो हम पीछे या जड़ क्यों रहें? व्यापारी के लिए स्त्रीलिंग शब्द न सूझ पाना ठीक वैसा ही है जैसे सैनिक का स्त्रीलिंग सोचने में दिमाग अटकता है।

असल में, जब शब्दों के भीतर स्त्री की कोई जगह नहीं होती, तो समाज भी मान बैठता है कि इन भूमिकाओं में स्त्रियों की कोई जगह नहीं है। यही वजह है कि बिजनेस वुमन बनने की aspiration रखने वाली लड़कियों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है?

हमारे सामने यह सवाल है कि क्या व्यापारी शब्द के भीतर स्त्री को जगह दी जा सकती है? अगर हां, तो कैसे?

कुछ संभावित विकल्प हमने आपके लिए चुने हैं। इनमें से कुछ शुद्ध संस्कृत शैली पर आधारित है तो कुछ सुनने में लयात्मक लग रहे हैं। इन विकल्पों को आज़माना ज़रूरी है। भाषा प्रयोग से ही बदलती है और जब तक हम प्रयोग नहीं करेंगे, तब तक यह शब्द सिर्फ़ ‘मूंछों वाले आदमी’ की जागीर बना रहेगा।
तो आगे क्या? अब ज़िम्मेदारी हमारी है — भाषा को बदलने की, ताकि सोच बदले। ‘बराबरी की भाषा’ का यही उद्देश्य है कि हम हर उस शब्द को चुनौती दें जिसमें स्त्रियों की छवि ग़ायब है, अदृश्य है या हास्यास्पद है।
इसलिए हम आपसे पूछते हैं –

हो सकता है अगली बार जब हम ‘व्यापारी’ शब्द सुनें, तो आंखों के सामने कुर्ती पहने, टैबलेट पर ऑर्डर चेक करती हुई, शार्प बिज़नेस माइंड महिला की छवि उभरे। भाषा बदलो, सोच बदलती है। शब्दों में बराबरी लाओ, दुनिया में भी आएगी।



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