एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि भारत में पांच साल तक के 60% से अधिक बच्चे रोजाना 2 से 4 घंटे मोबाइल और टीवी पर बिता रहे हैं, जबकि 13% बच्चे वीकडेज में 8 घंटे से ज्यादा स्क्रीन देखते हैं।

स्टडी के मुताबिक जिन माता-पिता ने स्क्रीन टाइम को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई थी या रोक लगाने के प्रति असमंजस में थे, उनके बच्चों में 4 से 6 घंटे स्क्रीन पर बिताने की संभावना तीन गुना ज्यादा थी। वहीं, जिन घरों में स्क्रीन टाइम पर कोई सीमा तय नहीं थी, वहां 8 घंटे से ज्यादा स्क्रीनिंग का खतरा दोगुना हो गया। एक खास बात यह भी सामने आई कि जिन पैरेंट्स ने बच्चों को खाना खिलाते समय मोबाइल या टीवी का सहारा लिया, उनके बच्चों में स्क्रीन की आदत सबसे ज्यादा देखी गई। ऐसे मामलों में बच्चों का स्क्रीन टाइम 1.8 से 3.5 गुना तक बढ़ गया।
स्टडी में पाया गया: 60% बच्चे हर दिन 2-4 घंटे स्क्रीन पर बिता रहे हैं। 13% बच्चे वीकडेज में 8 घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम देखते हैं। सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि या शिक्षा से ज्यादा इसका संबंध माता-पिता की आदतों और सोच से जुड़ा पाया गया।
- इंडियन पीडियाट्रिक एकेडमी की गाइडलाइन के मुताबिक, 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी प्रकार की स्क्रीन नहीं देखनी चाहिए।
- 2 से पांच साल के बच्चों के लिए अधिकतम एक घंटे तक स्क्रीन टाइम हो सकता है।
- 5-10 वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए दो घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए।
स्क्रीन टाइम के दुष्प्रभाव
भाषा और बोलने की क्षमता प्रभावित होना, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी, नींद की गुणवत्ता खराब होना, मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं।