दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दंगों के एक मामले की सुनवाई करते हुए पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि गवाह के रूप में पेश होने वाले पुलिस अधिकारियों को उस दिन कोई आधिकारिक ड्यूटी न सौंपी जाए, जब तक कि यह अपरिहार्य न हो। जज दयालपुर पुलिस थाने द्वारा दर्ज मामले की सुनवाई कर रहे थे।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण सिंह दयालपुर पुलिस थाने द्वारा दर्ज मामले की सुनवाई कर रहे थे।
ड्यूटी के चलते अदालत में पेश नहीं हो सके थे पुलिस अधिकारी
अदालत ने चार जुलाई को एक आदेश में कहा था कि जांच अधिकारी (आईओ) निरीक्षक मनोज कुमार ने इस आधार पर पेश नहीं हो पाने का अनुरोध भेजा था कि उन्हें एक से 10 जुलाई के बीच भारत मंडपम में पूर्व निर्धारित ड्यूटी सौंपी गई है। न्यायाधीश ने कहा कि मैं पुलिस आयुक्त द्वारा जारी स्थायी आदेश से अवगत हूं, जिसके तहत यह निर्देश दिया गया था कि जब भी किसी पुलिस अधिकारी या कर्मचारी को अदालत में गवाह के रूप में पेश होने के लिए बुलाया जाता है, तो उन्हें उस दिन के लिए कोई नियमित ड्यूटी या कोई अन्य ड्यूटी नहीं सौंपी जाएगी, जब तक कि यह अपरिहार्य न हो।
न्यायाधीश ने कहा कि आदेश के बावजूद छुट्टी का अनुरोध भेजा गया। न्यायाधीश ने कहा कि यह स्थिति इस तथ्य के मद्देनजर और भी दुखद है कि इस मामले में तीन आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं और अदालत में उनकी सुनवाई तीन महीने बाद हुई थी। फिर भी, दोनों तारीखें बिना किसी प्रभावी सुनवाई के बेकार चली गईं।
दो गवाहों का आना बेहद जरूरी था
अदालत ने कहा कि मामले में जांच अधिकारी समेत केवल दो गवाहों को साक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी और इससे उनकी अनुपस्थिति और भी अधिक परेशान करने वाली हो गई। आदेश में कहा गया है कि इन परिस्थितियों में, मामले को पुलिस आयुक्त के संज्ञान में लाया जाता है ताकि मामले की फिर से जांच की जा सके और आवश्यक निर्देश जारी किए जा सकें कि जब किसी पुलिस अधिकारी या कर्मचारी को अदालत में गवाह के रूप में बुलाया जाए, तो उन्हें उस दिन कोई अन्य ड्यूटी न सौंपी जाए। मामले की सुनवाई 25 अगस्त तक स्थगित कर दी गई।