मामला क्या है?
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने यह फैसला 10 बच्चों की ओर से दाखिल 8 याचिकाओं पर सुनाया, जिन्हें तकनीकी कारणों से एक निजी स्कूल में EWS/DG कैटिगेरी में दाखिला लेने में परेशानी हुई, जबकि शिक्षा के अधिकार के तहत वे इसके अधिकारी थे। कोर्ट ने गौर किया कि इन बच्चों का एक ही मकसद था कि क्वॉलिटी एजुकेशन और निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में समान बर्ताव पाना। इन बच्चों को होली इनोसेंट पब्लिक स्कूल(सीनियर विंग) ने इस आधार पर दाखिला देने से मना कर दिया था कि स्कूल की जूनियर विंग और सीनियर विंग अलग-अलग हैं और जूनियर विंग के लिए शिक्षा निदेशालय द्वारा आवंटन सीनियर विंग पर लागू नहीं होता है।
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता इसी स्कूल में अपनी-अपनी क्लास में EWS/DG के तहत पढ़ाई जारी रखने के हकदार होंगे, सभी आरटीई अधिकारों के साथ। DOE को निर्देश मिला कि वह याचिकाकर्ताओं को नए आईडी नंबर जारी करे।
कोई सपना गरीब या अमीर नहीं होता
जजमेंट के जरिए अपना विचार व्यक्त करते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा कि कोई सपना गरीब या अमीर नहीं होता, न ही कोई प्रतिभा गरीब या अमीर होती है। इसी तरह, समुदाय और सरकार से कोई गरीब या अमीर अपेक्षाएं नहीं हैं। जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं और समाज द्वारा उन्हें गरीब करार दिया जाता है, उनके सपनों को उनकी क्षमता या काबिलियत में कमतर नहीं माना जाना चाहिए। कोर्ट ने खुशी जताई कि मौजूदा मामले में स्टूडेंट्स ने जिस कठिनाई का सामना किया, वह प्रतिवादी स्कूल के जूनियर और सीनियर विंग के विलय के फैसले के साथ सकारात्मक मोड़ पर आकर समाप्त हुई।
प्राइवेट स्कूलों को HC की नसीहत
कोर्ट ने कहा कि भेदभाव, चाहे जानबूझकर किया गया हो या प्रणालीगत, समावेशी शिक्षा के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है। कोर्ट ने कहा कि स्कूलों का वातावरण भी ऐसा ही होना चाहिए, जहां हर बच्चा मूल्यवान और सम्मानित महसूस करे, चाहे उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि समानता की अवधारणा में अवसर की समानता भी शामिल है।